aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "raddii"
रद्दी अख़बार की तरहमुझे बेच दिया गया
बे-कार रद्दी हैकि अब वक़अत नहीं है कोई जिस की
नाम अपना खुरच के जिस पर सेमैं ने रद्दी में बारहा बेचा
इल्म की रद्दी आधी बेचीआधी बाँट के लोगों पर एहसान धरा
अपनी चौकी से फ़राग़त पा गयाये कि रद्दी फाड़ कर
कुतर कुतर कर खा गया आख़िरचूहा सब रद्दी अख़बार
आग बरसाती रहीज़िंदगी फ़ुट-पाथ पर
बाक़ी रद्दी के भाव बिकते हैं
रद्दी निकाली थी घर सेकि बेच आएँ
वो ख़्वाब जो मेरी ज़िंदगी थेवो कब के रद्दी की टोकरी में
उन्हों ने सुब्ह और शाम के अख़बार उठाएऔर रद्दी वाले को दे दिए
दिल में पिन्हाँ जो एक रद्दी कीटोकरी जिस में पाल रखी थीं
नीले में रखना रद्दी पेपरगत्ते डब्बे लकड़ी की मोटर
यहाँ पड़े सोचते हैंये काएनात रद्दी की टोकरी है
जिस तरह पढ़ के रोज़ का अख़बारडाल देते हैं लोग रद्दी में
हर बार मेरे सामने आती रही हो तुमहर बार तुम से मिल के बिछड़ता रहा हूँ मैं
क़ैद-ए-मौसम से तबीअत रही आज़ाद उस कीकाश गुलशन में समझता कोई फ़रियाद उस की
कि तू नहीं तिरा ग़म तेरी जुस्तुजू भी नहींगुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे
वाइज़-ए-क़ौम की वो पुख़्ता-ख़याली न रहीबर्क़-ए-तबई न रही शोला-मक़ाली न रही
यूँही हमेशा उलझती रही है ज़ुल्म से ख़ल्क़न उन की रस्म नई है न अपनी रीत नई
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