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नज़्म
जिस दिन से बँधा है ध्यान तिरा घबराए हुए से रहते हैं
हर वक़्त तसव्वुर कर कर के शरमाए हुए से रहते हैं
अख़्तर शीरानी
नज़्म
वो कैसे लोग होते हैं जिन्हें हम दोस्त कहते हैं
अकेले रास्ते पे जब मैं खो जाऊँ तो मिलते हैं
इरफ़ान अहमद मीर
नज़्म
वो आशुफ़्ता-मिज़ाज अंदोह-परवर इज़्तिराब-आसा
जिसे तुम पूछते रहते हो कब का मर चुका ज़ालिम
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
रुख़्सत हुआ वो बाप से ले कर ख़ुदा का नाम
राह-ए-वफ़ा की मंज़िल-ए-अव्वल हुई तमाम