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नज़्म
दश्त-ए-तन्हाई में दूरी के ख़स ओ ख़ाक तले
खिल रहे हैं तिरे पहलू के समन और गुलाब
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तिरे सीने में है पोशीदा राज़-ए-ज़िंदगी कह दे
मुसलमाँ से हदीस-ए-सोज़-ओ-साज़-ए-ज़िंदगी कह दे
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हर मसर्रत में है राज़-ए-ग़म-ओ-हसरत पिन्हाँ
क्या सुनोगी मिरी मजरूह जवानी की पुकार