aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "rauzan"
बुझा जो रौज़न-ए-ज़िंदाँ तो दिल ये समझा हैकि तेरी माँग सितारों से भर गई होगी
कानों पे हो न मेरे दैर ओ हरम का एहसाँरौज़न ही झोंपड़ी का मुझ को सहर-नुमा हो
जहाँ ये रौज़न-ए-ज़ुबूँ निगाह की मुख़ासिमत न कर सकेजहाँ खुली फ़ज़ा खुली फ़ज़ा कि जैसे कोई कह रहा हो आइए
कोई रौज़न कोई खिड़की नहीं बाक़ीफ़क़त क़ब्रें ही क़ब्रें हैं
अब्र के रौज़न से वो बाला-ए-बाम-ए-आसमाँनाज़िर-ए-आलम है नज्म-ए-सब्ज़-फ़ाम-ए-आसमाँ
कोई रौज़न है न दरसो गए अहल-ए-ख़बर
आज वो आ ही गयारौज़न-ए-दर से लरज़ते हुए देखा मैं ने
और उम्मीदों के रौज़न शहर-ए-आइंदा में खिलते थेबहुत आहिस्ता आहिस्ता
मगर हर इक दर पे जा के देखा हर एक दीवार रौंद डाली हर एक रौज़न को दिल समझ करये भेद जाना
उठ कर धुँदलके की मानिंद पिन्हाँ किया हो फ़ज़ा को नज़र सेज़रा देखो छत पर लटकते हैं फ़ानूस अपनी हर इक नीम-रौशन किरन से सुझाते
देख ऐ जोश-ए-अमल वो सक़्फ़ ये दीवार हैएक रौज़न खोल देना भी कोई दुश्वार है
किसी रौज़न-ए-दर से घुस करजनाब-ए-वज़ारत-ए-पनह के
बादलों से माह-ए-नौ की इक उचटती सी ज़ियाझाँकना क़तरे के रौज़न से उरूस-ए-बहर का
शहर के लोगोंतुम्हारे रौज़न-ए-चाक-ए-जिगर भी बंद हैं
एक दीवार का रौज़न इसी रौज़न से निकल कर किरनेंमिरी आँखों से लिपटती हैं मचल उठती हैं
नवम्बर की ज़र्द-रू धूपखिड़की के रौज़न से निकल कर
और कभी भूल में हर नज्म-ए-दरख़्शाँ से लपक उठते थे शोले सुख केजैसे रौज़न से तिरे तान लपकती हुई फैलाती है बाज़ू अपने
जाने इस रौज़न में बैठे बैठेतू किस ध्यान में तैरी चिड़िया ऐ री चिड़िया
कोई रौज़न-ए-दर दरवाज़ा खुल जाए तोये इस हब्स-ज़दा कमरे से बाहर निकले
हर एक रौज़न से आता जाताइधर का दुख है उधर का दुख है
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books