आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "rif.at-e-charkh-e-barii.n"
नज़्म के संबंधित परिणाम "rif.at-e-charkh-e-barii.n"
नज़्म
ऐ शफ़क़ ऐ ज़ेवर-ए-आराइश-ए-चर्ख़-ए-बरीं
तुझ में वो शोख़ी है जो ख़ून-ए-शहीदाँ में नहीं
साक़िब कानपुरी
नज़्म
मौजज़न है जिस में ऐ चर्ख़ इक सुरूर-ए-सरमदी
मेरी दुनिया है तसद्दुक़ इस छलकते जाम पर
चरख़ चिन्योटी
नज़्म
कुफ्र-ओ-बातिल के उड़े हाथों के तोते ऐ 'चर्ख़'
हक़-परस्ती का वो यूँ डंका बजाता आया
चरख़ चिन्योटी
नज़्म
ले के दिल और लाश माँ की छोड़ कर जब वो चला
काँप उठी सारी ज़मीं थर्रा गया चर्ख़-ए-बरीं
नबीउल हसन शमीम
नज़्म
इक दफ़्तर-ए-मज़ालिम-ए-चर्ख़-ए-कुहन खुला
वा था दहान-ए-ज़ख़्म कि बाब-ए-सुख़न खुला
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
था यहाँ तक हम पे जौर-ए-गर्दिश-ए-चर्ख़-ए-बुलंद
मोतियों के बदले हम को कंकर आते थे पसंद
जगत मोहन लाल रवाँ
नज़्म
जहाँ की ज़मीं रश्क-ए-चर्ख़-ए-कुहन है
जहाँ शोख़ियाँ हैं अदा है फबन है