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नज़्म
ऐडवान्स में पैसे दे देना तौहीन-ए-रिंदी ओ मस्ती है
बिल भेज के लेना दाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है
ज़रीफ़ जबलपूरी
नज़्म
वहीं से जीने के हौसले भी वहीं से रिंदी के वलवले भी
हर एक आहट पे सानेहा इक नया गुज़रता है लम्हा लम्हा
अनीस सुलताना
नज़्म
इसी के दम से सरशारी-ओ-मय-ख़्वारी रहे दाइम
इसी से रिंद की रिंदी भी रंगीं जाम पाती है
प्रेम पाल अश्क
नज़्म
मुझ रिंद-ए-हुस्न-कार की मय-ख़्वारियाँ न पूछ
इस ख़्वाब-ए-जाँ-फ़रोज़ की बेदारियाँ न पूछ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
ये सुन के उन से हँस हँस कहती है शोख़ रंडी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
कुछ तिनके शोख़ी करते हैं सैलाब के सरकश धारे से
मिंदील सरों से गिरती है और पाँव से रौंदी जाती है
जमील मज़हरी
नज़्म
रौंदी कुचली आवाज़ों के शोर से धरती गूँज उठी है
दुनिया के ईना-ए-नगर में हक़ की पहली गूँज उठी है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
कहीं इक रिंद और वामाँदा-ए-अफ़्क़ार तन्हाई
कहीं महफ़िल की महफ़िल तौर से बे-तौर है साक़ी