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नज़्म
ये ज़ख़्मी बे-अमाँ मख़्लूक़ हर सू ज़ेर-ए-ख़ंजर है
बता ऐ दिल ये ग़म की रात है या रोज़-ए-महशर है
ओवेस अहमद दौराँ
नज़्म
''मैं मो'तक़िद-ए-फ़ित्ना-ए-महशर न हुआ था''
मैं भी ग़म-ए-दुनिया का शनावर न हुआ था
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
गर्मी-ए-हंगामा-ए-महशर तिरी महफ़िल में है
सर्द जो होती नहीं वो आग तेरे दिल में है