aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "roz-e-vasl"
फ़र्दा महज़ फ़ुसूँ का पर्दा, हम तो आज के बंदे हैंहिज्र ओ वस्ल, वफ़ा और धोका सब कुछ आज पे रक्खा है
कभी रोज़-ए-वस्ल भी देखतेये जो आरज़ू थी वो मर गई
हमें हर रोज़मश्क़-ए-वस्ल के हैजान से हो कर
ज़ुल्फ़-ए-शब-ए-वस्ल खुल रही थीख़ुश्बू साँसों में घुल रही थी
भर चुका जाम-ए-शर्त-ए-वस्ल जिसेसुब्ह तक, आँसुओं से भरना था
रंग-ए-फ़िराक़-ओ-वस्ल की परतें अभी खुली न थींऐसे में थी किसे ख़बर
बदल चुका है बहुत अहल-ए-दर्द का दस्तूरनशात-ए-वस्ल हलाल ओ अज़ाब-ए-हिज्र हराम
सुब्ह-ए-नाशाद भी रोज़-ए-नाकाम भीउन का दम-साज़ अपने सिवा कौन है
ख़याल-ए-वस्ल में पिन्हाँ
नवेद-ए-आमद-ए-रोज़-ए-जज़ा नहीं आतीये किस ख़ुमार-कदे में नदीम हैं हम तुम
रोज़-ए-आइंदा, रोज़-ए-फ़र्दा होएक शाहीन-ए-मावरा से परे
ये तल्ख़ी-ए-रोज़-ओ-शबाँरंजिशें भूल कर
सुकूत-ए-वस्ल में कहींगिलास लम्स तिश्नगी
मुझे भी आज तक न मिल सकातमाशा-गाह-ए-रोज़-ओ-शब का बीज
और अबग़ुबार-ए-रोज़-ओ-शब के
रोज़-ओ-शबऔर
ख़याल-ए-रोज़-ए-हिसाब कैसासवाब कैसा अज़ाब कैसा
लम्हा-ए-क़ुर्ब मेंसाअत-ए-वस्ल में
ढलती हुई रात का नश्शा-ए-वस्ल हैजिस्म
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