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नज़्म
क़ल्ब में सोज़ नहीं रूह में एहसास नहीं
कुछ भी पैग़ाम-ए-मोहम्मद का तुम्हें पास नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रात हँस हँस कर ये कहती है कि मय-ख़ाने में चल
फिर किसी शहनाज़-ए-लाला-रुख़ के काशाने में चल
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जिन की आँखों को रुख़-ए-सुब्ह का यारा भी नहीं
उन की रातों में कोई शम्अ मुनव्वर कर दे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये तेरा ज़र्द रुख़ ये ख़ुश्क लब ये वहम ये वहशत
तू अपने सर से ये बादल हटा लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हैरती हूँ मैं तिरी तस्वीर के ए'जाज़ का
रुख़ बदल डाला है जिस ने वक़्त की परवाज़ का
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तुम रूठ चुके दिल टूट चुका अब याद न आओ रहने दो
इस महफ़िल-ए-ग़म में आने की ज़हमत न उठाओ रहने दो
आमिर उस्मानी
नज़्म
अदा-ए-लग़्ज़िश-ए-पा पर क़यामतें क़ुर्बां
बयाज़-रुख़ पे सहर की सबाहतें क़ुर्बां