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नज़्म
शाम को जब अपनी ग़म-गाहों से दुज़्दाना निकल आते हैं हम?
या ज़वाल-ए-उम्र का देव-ए-सुबुक-पा रू-ब-रू
नून मीम राशिद
नज़्म
गोया वो तय्यारा, उस की मोहब्बत में
अहद-ए-वफ़ा के किसी जब्र-ए-ताक़त-रुबा ही से गुज़रा!
नून मीम राशिद
नज़्म
नुशूर वाहिदी
नज़्म
हुदूद-ए-इस्तवा क़ुतबैन से यूँ हो गए मुदग़म
कि है अब रुबअ मस्कों जैसे घर की चार-दीवारी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
तारिक़ क़मर
नज़्म
क्या क्या अनार छोड़े हैं बिशनी हो रू-ब-रू
ऐ बी तुम अपनी कुल्हिया हमें छोड़ने को दो
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मुर्ग़ान-ए-बाग़ बन कर उड़ते फिरें हवा में
नग़्मे हों रूह-अफ़्ज़ा और दिल-रुबा सदाएँ
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
इक सुकूत हर तरफ़ होश-रुबा ओ हौल-नाक
ख़ुल्द-ए-वतन के पासबाँ ख़ुल्द-ए-वतन को क्या हुआ