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नज़्म
सिगरेट ने ये इक पान के बीड़े से कहा
तू हमेशा से परी-रूयों के झुरमुट में रहा
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
सब्त जिस राह में हों सतवत-ए-शाही के निशाँ
उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मअ'नी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
उस शाम मुझे मालूम हुआ इस कार-गह-ए-ज़र्दारी में
दो भोली-भाली रूहों की पहचान भी बेची जाती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दिए दिखाते हैं ये भूली-भटकी रूहों को
मज़ा भी आता था मुझ को कुछ उन की बातों में
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
कौन समझेगा जहाँ में मिरे ज़ख़्मों का हिसाब
किस को ख़ुश आएगा इस दहर में रूहों का अज़ाब
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
वो गप शप क़हक़हे वो अपने अपने इश्क़ के क़िस्से
वो मीरास रोड की बातें वो चर्चे ख़ूब-रूयों के
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
करें नसीहत बुतों पे मरने से कोई भी फ़ाएदा नहीं है
मैं ज़िक्र करता हूँ जब वस्ल की रुतों का
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
उसे कहना मोहब्बत नाम है रूहों के मिलने का
उसे कहना मोहब्बत नाम है ज़ख़्मों के सिलने का