aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "saakhta"
उस ने बे-साख़्ता फिर मुझ को पुकारा होगाचलते चलते कोई मानूस सी आहट पा कर
जहाँ-ज़ाद नीचे गली में तिरे दर के आगेये मैं सोख़्ता-सर हसन-कूज़ा-गर हूँ!
अँधेरी रात के परछावें डसने लगते हैंमैं जुगनू बन के तो तुझ तक पहुँच नहीं सकता
तेरा बर्फ़ीला बदन बे-साख़्ता लौ दे उठामेरी साँसें शाम की भीगी हवाएँ हो गईं
कुछ ख़्वाब कि मदफ़ून हैं अज्दाद के ख़ुद-साख़्ता अस्मार के नीचेउजड़े हुए मज़हब के बना रेख़्ता औहाम की दीवार के नीचे
लाला-ओ-गुल के बे-साख़्ता इस्तिआ'रे लगे
ख़ुद-साख़्ता पैकराँ को छू लेये ज़ख़्म-ए-तलब ये ना-मुरादी
किसी के होंट की गर्मीतुम्हें बे-साख़्ता महसूस तो होगी
नाचेंगे गाएँगेबे-साख़्ता क़हक़हों हमहमों से
बे-साख़्ता क़हक़हों हमहमों सेमज़ामीर के ज़ेर-ओ-बम से
जैसे बे-साख़्ता अंदाज़ में बिजली चमकेलेकिन इस दामन-ए-आलूदा की हर लहर मिटी
बे-साख़्ता जीने के तालिब हैंये दिल के बोझ का अहवाल
चंद सिक्कों के छनाके पे हया रक़्स करेहुस्न-ए-मासूम का बे-साख़्ता-पन बिकता है
सब ने पूछा कि भँवर से तू बचेगी कैसेमैं ने बे-साख़्ता 'नजमा' ये पुकारा माँ है
और वो नाज़नीं बे-साख़्ता बे-लाग इरादे के बग़ैरएक गिरती हुई दीवार नज़र आने लगे
बे-साख़्ता खिलखिलाते हुएसुना है ख़ुद को मैं ने
मगर शब की अँधेरी ख़ल्वत-ए-गुमनाम के पर्दे में खो कर उन को ये मालूम हो जाएगा इक पल मेंऔर इक लज़्ज़त के कैफ़-ए-मुख़्तसर में खो के वो बे-साख़्ता ये बात कह उट्ठेंगे क्या
आपस में ये हर रोज़ की ख़ूँ-रेज़ियाँ कब तकख़ुद-साख़्ता मज़हब की रूसूमात बदल डाल
ये जो तुम नए बहानों से हमें देखने आते हो सब समझ आता हैहम तुम्हें देख लें और तुम्हारा बे-साख़्ता मुँह फेर जाना ऐसा कब तक चलेगा
उन के हर हाल का बे-साख़्ता-पन देखा हैवो न ख़ुद देख सकें जिस को नज़र भर के कभी
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