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नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मालिक-ए-अर्ज़-ओ-समा को याद करता है जहाँ
हम्द गाती है ज़मीं तस्बीह पढ़ता आसमाँ
मोहम्मद असदुल्लाह
नज़्म
नक़्श-ए-पा तेरा रहा मंज़िल-नुमा तहज़ीब का
राहत-ए-अर्ज़-ओ-समा पिन्हाँ तिरी मंज़िल में है
अख़्तर हुसैन शाफ़ी
नज़्म
मगर आज इस तरह देखा है वो नक़्श-ए-हसीं मैं ने
कि रख दी ख़ाक-ए-हैरत पर मोहब्बत की जबीं मैं ने
अख़्तर शीरानी
नज़्म
राद हूँ बर्क़ हूँ बेचैन हूँ पारा हूँ मैं
ख़ुद-प्रुस्तार, ख़ुद-आगाह ख़ुद-आरा हूँ मैं
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
जिस तरह ख़ंजर में जौहर जिस तरह मोती में आब
जिस तरह अर्ज़-ओ-समा में फ़ितरत-ए-हुस्न-ओ-शबाब
ऋषि पटियालवी
नज़्म
सब्ज़ा ओ बर्ग ओ लाला ओ सर्व-ओ-समन को क्या हुआ
सारा चमन उदास है हाए चमन को क्या हुआ