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नज़्म
शहद का घूँट समझ कर सम-ए-क़ातिल पी जाओ
किसी क़ीमत किसी उजरत पे उसे साथ मिला मिला लो अपने''
मख़मूर जालंधरी
नज़्म
दुश्मन-ए-जान-ए-हज़ीं ईसा-ए-दौराँ तू है
सम्म-ए-क़ातिल है कभी चश्मा-ए-हैवाँ तू है
मास्टर बासित बिस्वानी
नज़्म
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साए हैं
तआ'रुफ़ रोग हो जाए तो उस का भूलना बेहतर
साहिर लुधियानवी
नज़्म
एक दो का ज़िक्र क्या सारे के सारे नोच लूँ
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
दश्त-ए-तन्हाई में ऐ जान-ए-जहाँ लर्ज़ां हैं
तेरी आवाज़ के साए तिरे होंटों के सराब