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नज़्म
कैफ़-ए-सहबा-ए-तरब में ग़र्क़-ए-मय-ख़ाना है आज
हर शजर साक़ी-ए-मय हर फूल पैमाना है आज
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जिब्रील मिरे साथ रहे रोज़-ए-अज़ल से
मय-ख़ाना-ए-इरफ़ाँ में शब-ओ-रोज़ क़दह-नोश
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
मय भी है साक़ी भी है फिर लुत्फ़-ए-मय-ख़ाना नहीं
मेरी बातों को समझ ले ऐसा दीवाना नहीं
माया खन्ना राजे बरेलवी
नज़्म
मेरे मय-ख़ाने में मौज-ए-मय-ए-उम्मीद हराम
मैं वो नक़्क़ाश हूँ खोया हुआ भटका नक़्क़ाश
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
रात हँस हँस कर ये कहती है कि मय-ख़ाने में चल
फिर किसी शहनाज़-ए-लाला-रुख़ के काशाने में चल