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नज़्म
है मुसलमानों पर वाजिब सदक़ा-ए-ईद-उल-फ़ित्र
पा के रोज़ी ख़ुश हैं ग़ुरबा ये निहाल-ए-ईद है
निसार कुबरा अज़ीमाबादी
नज़्म
मैं होंटों पे थूक देती हूँ
लेकिन सदक़ा-ए-जारीया का सुर्ख़ रुमाल उँगली पे नहीं बाँध सकती
सिदरा सहर इमरान
नज़्म
मर्द-ए-मुजाहिद मर्द-ए-जरी हो योद्धा हो बलवान हो तुम
साँची मदुरा अमृतसर अजमेर की अज़्मत तुम से है
अर्श मलसियानी
नज़्म
कितने मरदान-ए-जरी कितने जवानान-ए-ए-ग़यूर
कितने साहिब-ए-अक़्ल कितने मालिक-ए-फ़हम-ओ-शऊर
अर्श मलसियानी
नज़्म
सर-ज़मीन-ए-हिंद का ये बाज़ू-ए-शमशीर-ज़न
जिस के मरदान-ए-जरी हैं शो'ला-बार-ओ-सफ़-शिकन
अर्श मलसियानी
नज़्म
नहीं मुमकिन मिटाना मुझ को मिस्ल-ए-नक़श-ए-पा यारो
ख़लाओं में रहूँगा गूँजता बन कर सदा यारो
सदा अम्बालवी
नज़्म
किया क्या ऐ सदा तू ने बता आ कर ज़माने में
गुज़ारी ज़िंदगी सारी फ़क़त पीने-पिलाने में