aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "saeed"
तो क्या वो झूट थातू ने जो उस लड़की से बोला था
रेस्तौरान की रंगा-रंग रौशनियों मेंडूबा समर के ख़ूबसूरत गीत की मद्धम लय में
और तुम नहीं आतेचाँद डूब जाता है
हवा के हाथों में हाथ दे करजुदाइयों के सफ़र पे निकले थे तुम
खरी बातों का ज़ाइक़ा तुर्श होता हैब-हैसियत इंसान
एक मज़दूरकि जिस के बदन ने
'सईद' लेकिन उसी को चाहूँजिसे दुआ-ए-ख़लील माँगे
ज़िंदगी इस तरह गुज़रती हैजिस तरह जून के महीने में
उस की मर्दांगी कोमेरे आँसुओं की हाजत थी
एक सुब्ह का तारासर पे आसमाँ ओढ़े
कब से क़ैद हूँचलते-फिरते ज़िंदाँ में
तुम ये कहते हो कि क़ाइल नहीं अस्लाफ़ का मैंसच है ये दौर भी अस्लाफ़ परस्ती का नहीं
क़ुर्बतों के फ़ासलेजो थे वो कम नहीं हुए
बहुत गुमान है अपने वजूद का मुझ कोमगर कोई भी हक़ीक़त अयाँ नहीं मुझ पर
फिर मिरे तआक़ुब मेंइक उदास सा चेहरा
शाम-ए-हंगाम तो हम हैतसव्वुर के खटोलों पे सजी
एक साफ़्ट-ड्रिंक की क़ीमत मेंदिसम्बर की सर्दी में
काँधे पर क़द से लम्बी बोरी लटकाएएक बच्चा
सर-ज़मीन-ए-तमन्ना की मिट्टी सलाख़ें उगाने लगी हैगिरफ़्तार होने का मौसम
वो एक फ़िक्र जो बा-ए'तिबार करती हैनज़र में काबिल-सद-इफ़्तिख़ार करती है
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