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नज़्म
गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मरे दोस्त
रोज़ ओ शब शाम ओ सहर मैं तुझे बहलाता रहूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
रबूद आँ तुर्क शीराज़ी दिल-ए-तबरेज़-ओ-काबुल रा
सबा करती है बू-ए-गुल से अपना हम-सफ़र पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिस की पीरी में है मानिंद-ए-सहर रंग-ए-शबाब
कह रहा है मुझ से ऐ जूया-ए-असरार-ए-अज़ल
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिन्हें सहर निगल गई, वो ख़्वाब ढूँढता हूँ मैं
कहाँ गई वो नींद की, शराब ढूँढता हूँ मैं
आमिर उस्मानी
नज़्म
सहर-दम झुटपुटे के वक़्त रातों के अँधेरे में
कभी मेलों में नाटक-टोलियों में उन के डेरे में
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
जवानी है सुहाग उस का तबस्सुम उस का गहना है
नहीं आलूदा-ए-ज़ुल्मत सहर-दामानियाँ उस की