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नज़्म
फूट निकला दर-ओ-दीवार से सैलाब-ए-नशात
अल्लाह अल्लाह मिरा कैफ़-ए-नज़र आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये ख़याल आता है रह रह कर दिल-ए-बेताब में
बह न जाऊँ फिर तिरे नग़्मात के सैलाब में
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मुश्तइल, बे-बाक मज़दूरों का सैलाब-ए-अज़ीम!
अर्ज़-ए-मश्रिक, एक मुबहम ख़ौफ़ से लर्ज़ां हूँ मैं
नून मीम राशिद
नज़्म
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
कुछ तिनके शोख़ी करते हैं सैलाब के सरकश धारे से
मिंदील सरों से गिरती है और पाँव से रौंदी जाती है
जमील मज़हरी
नज़्म
नींद में डूबे बंद आँखों में ख़्वाब किधर से आते हैं
बाग़ों में ये रंगों के सैलाब किधर से आते हैं
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
आदमी ख़्वाहिशों के अँधेरे नशेबों में सैलाब की तरह बहते हुए
चोर-बाज़ार, सट्टा, जुआरी