aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "saj.a"
एक बे-नाम सी उम्मीद पे अब भी शायदअपने ख़्वाबों के जज़ीरों को सजा रक्खा हो
तेरी दहलीज़ पर सजा आएफिर तिरी याद पर चढ़ा आए
फ़ज़ा-ए-शाम में डोरे से पड़ते जाते हैंजिधर निगाह करें कुछ धुआँ सा उठता है
अपने घर में न झरोका न मुंडेरताक़ सपनों के सजा रक्खे हैं
किस ने कर दिए पामाल साया-दार शजरजड़ें कहीं पे कटीं और कहीं बचे न समर
सबा सबा वो ज़ुल्फ़ेंचले लहू गर्दिश में
है माँ तो दिल-ओ-जाँ से लुटाती है सदा प्यारममता के लिए फिरती है दौलत सर-ए-बाज़ार
मेरे बे-ख़्वाब दरीचों को सुला जाएगामेरे कमरे को सलीक़े से सजा जाएगा
अब जिधर देखो उधर मौत ही मंडलाती हैदर-ओ-दीवार से रोने की सदा आती है
वो लम्हे वो यादें सजा कर के यारोये नाशाद दिल शाद करने लगा हूँ
कि जिस पे तुम ने गिरफ़्त-ए-वा'दा की रेशमी शाल के सितारे सजा दिए थेबहुत दिनों से
हीरोशीमा पे किताबें भी सजा रक्खी हैंबेड़ियाँ आहनी हथकड़ियाँ भी स्टील की हैं
ये सजा बना चेहरा!क्या डरावना होगा
जो हर्फ़-ए-हक़ की सलीब पर अपना तन सजा करजहाँ से रुख़्सत हुए
'हाफ़िज़' के तरन्नुम को बसा क़ल्ब-ओ-नज़र में'रूमी' के तफ़क्कुर को सजा क़ल्ब-ओ-नज़र में
कभी जुमूद कभी सिर्फ़ इंतिशार सा हैजहाँ को अपनी तबाही का इंतिज़ार सा है
नुमाइश पे गोया शबाब आ रहा थाइधर हम भी बज़्म-ए-तख़य्युल सजा कर
तुम नई बज़्म सजा लोगी तुम्हारा क्या हैतुम्हें ढूँडेंगी कहाँ मेरी सुलगती रातें
इक तरफ़ हट के शब-ओ-रोज़ के हंगामों सेतेरे जल्वों का परी-ख़ाना सजा रक्खा था
सजा दी तू नेनुक़रई तार में आवाज़ मुंढा दी तू ने
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