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नज़्म
मुज़्तरिब-बाग़ के हर ग़ुंचे में है बू-ए-नियाज़
तू ज़रा छेड़ तो दे तिश्ना-ए-मिज़राब है साज़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हाँ बता दे हम को भी ऐ रूह-ए-अर्बाब-ए-नियाज़
किस तरह मिटता है आख़िर रंग-ओ-ख़ूँ का इम्तियाज़
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
आशिक़ाँ कहते हैं माशूक़ों से बा-इज्ज़-ओ-नियाज़
है अगर मंज़ूर कुछ लेना तो हाज़िर हैं रूपे