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नज़्म
तमीज़-ए-बंदा-ओ-आक़ा फ़साद-ए-आदमियत है
हज़र ऐ चीरा-दस्ताँ सख़्त हैं फ़ितरत की ताज़ीरें
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
क्या सख़्त मकाँ बनवाता है ख़म तेरे तन का है पोला
तू ऊँचे कोट उठाता है वाँ गोर गढ़े ने मुँह खोला
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ख़ाक-ओ-ख़ूँ में मिल रहा है तुर्कमान-ए-सख़्त-कोश
आग है औलाद-ए-इब्राहीम है नमरूद है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कौन सी वादी में है कौन सी मंज़िल में है
इश्क़-ए-बला-ख़ेज़ का क़ाफ़िला-ए-सख़्त-जाँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सुब्ह का फ़रज़ंद ख़ुर्शीद-ए-ज़र-अफ़शाँ का अलम
मेहनत-ए-पैहम का पैमाँ सख़्त-कोशी की क़सम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
सख़्त हैराँ हूँ कि महफ़िल में तुम्हारी और ये ज़िक्र
नौ-ए-इंसानी के मुस्तक़बिल की अब करते हो फ़िक्र