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नज़्म
जिन्हें मुतरिबों ने चाहा कि सदाओं में पिरो लें
जिन्हें शाइ'रों ने चाहा कि ख़याल में समो लें
साहिर लुधियानवी
नज़्म
अब ये सोचा है कि फिर दिल में समो लूँगा तुझे
जज़्ब कर लूँगा निगाहों में तिरे नक़्श-ए-हसीं
शाहिद अख़्तर
नज़्म
क्या ये मुमकिन नहीं कि हम अपनी जानें इक ही क़ालिब में समो लें
ताकि मन-ओ-तू का झगड़ा ही मिट जाए
फ़ारूक़ नाज़की
नज़्म
तोलती हूँ हर्फ़ सारे इश्क़ की मीज़ान में
और समो लेती हूँ उन का हुस्न अपनी जान में