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नज़्म
तुम्ही बताओ कि इस खंडर में जहाँ पे मकड़ी की सनअतें हों
जहाँ समुंदर हों तीरगी के
अली अकबर नातिक़
नज़्म
मुझे ऐ वतन तू ज़रा बता किधर अब हैं वो तिरी सन’अतें
जो हर एक मुल्क से लाई थीं तिरे पास खींच के दौलतें
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
नज़्म
सो मैं ने साहत-ए-दीरोज़ में डाला है अब डेरा
मिरे दीरोज़ में ज़हर-ए-हलाहल तेग़-ए-क़ातिल है
जौन एलिया
नज़्म
सबात-ए-ज़िंदगी ईमान-ए-मोहकम से है दुनिया में
कि अल्मानी से भी पाएँदा-तर निकला है तूरानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नागाह लहकते खेतों से टापों की सदाएँ आने लगीं
बारूद की बोझल बू ले कर पच्छिम से हवाएँ आने लगीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सनानें खींच ली हैं सर-फिरे बाग़ी जवानों ने
तू सामान-ए-जराहत अब उठा लेती तो अच्छा था