aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "sara khan"
सोच रही हूँअरमानों के पिंजरे से
गुलाबी शाम की दस्तकसुनी तुम ने
ऐ दिल-ए-मुज़्तरिबऐ मिरे बेवफ़ा
देखो उस का झील सा मुखड़ा जैसे ख़्वाब ख़यालकैसा है आवाज़ का जादू जैसे मेघ मल्हार
सहरा सहरा ख़ाक उड़ाताजंगल में लहराता है
इस से बड़ा कोईसराब-ख़ाना भी नईं
सारे ख़ाक में मिल जाएँगेज़ीस्त हमारी लोगो
सारे ख़त चूल्हे में झोंकेआईने पर पत्थर मारा
ख़्वाब दफ़्न होते हैंदिल के सर्द-ख़ाने में
कभी सर ख़म नहीं करनामगर ये याद तू रखना
तेरे दरवाज़े पर सर ख़म केरल राजस्थानमेरे हिन्दोस्तान मेरे हिन्दोस्तान
ख़ाक-बर-सर हुई ज़िंदगीकैसी बे-घर हुई ज़िंदगी
आग के रंग में ढल गएजिस में मेरे वो सारे ख़त
कभी न होगा सर ख़म इस कासह रंगा है परचम इस का
ख़ाक-बर-सर चलो ख़ूँ-ब-दामाँ चलोराह तकता है सब शहर-ए-जानाँ चलो
या फिर सना-ख़्वाँ हैं उन केहमारे लिए सिर्फ़ नारे बचे हैं
यहाँ तो अपनी सदा कान में नहीं पड़तीवहाँ ख़ुदा का तनफ़्फ़ुस सुनाई देता है
दर्द फिर ख़ाक-ब-सर आएगाख़्वाब की आँख में सिमटा हुआ सारा काजल
किसी सम्त से उस की आहट न आईबहुत देर तक रात के सर्द-ख़ाने में
अब मैं इस मोड़ से क्या कहूँ? तू बतापूछता है ''वो साया कहाँ रह गया''
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