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नज़्म
तख़्त-ए-फ़ग़्फ़ूर भी उन का था सरीर-ए-कए भी
यूँ ही बातें हैं कि तुम में वो हमियत है भी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कली बोली सरीर-आरा हमारी है वो शहज़ादी
दरख़्शाँ जिस की ठोकर से हों पत्थर भी नगीं बन कर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सरीर काबिरी
नज़्म
तेरी आवाज़ है कानों को सरीर-ए-दिलकश
सौ तरानों से है बेहतर ये नफ़ीर-ए-दिलकश
मास्टर बासित बिस्वानी
नज़्म
क़हत उस पर क़त्ल-ओ-ग़ारत का ये आलम हाए हाए
हर तरफ़ है नाला-ओ-फ़रियाद-ओ-मातम हाए हाए
सरीर काबिरी
नज़्म
हर दर पे पहुँच कर रो देना दुख पेट का सब से कह जाना
जब सामने आ जाता है कोई फैला कर हाथ को रह जाना
सरीर काबिरी
नज़्म
सरीर काबिरी
नज़्म
अहद-ए-हाज़िर में वफ़ूर-ए-जज़्बा-ए-बेताब से
सारी दुनिया को जब इक मरकज़ पे ला सकते नहीं
सरीर काबिरी
नज़्म
ज़हे तक़दीर ज़हे बख़्त कि नाचीज़ 'सरीर'
तिरे ख़ुद्दाम की फ़िहरिस्त में शामिल हो जाए
सरीर काबिरी
नज़्म
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों
न मैं तुम से कोई उम्मीद रखूँ दिल-नवाज़ी की
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तुझ पे उट्ठी हैं वो खोई हुई साहिर आँखें
तुझ को मालूम है क्यूँ उम्र गँवा दी हम ने