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नज़्म
इस देस में हुए हैं हज़ारों मलक-सरिश्त
मशहूर जिन के दम से है दुनिया में नाम-ए-हिंद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
धूप में लहरा रही है काकुल-ए-अम्बर-सरिश्त
हो रहा है कम-सिनी का लोच जुज़्व-ए-संग-ओ-ख़िश्त
जोश मलीहाबादी
नज़्म
तुम ने देखी न धड़कते हुए जज़्बों की सरिश्त
मेरे विज्दान ने तख़्लीक़ किया था जिस को
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
मायूसियों की तह में जुनूँ-ख़ेज़ियाँ भी हैं
अफ़्लास की सरिश्त में ख़ूँ-रेज़ियाँ भी हैं