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नज़्म
सो मैं ने साहत-ए-दीरोज़ में डाला है अब डेरा
मिरे दीरोज़ में ज़हर-ए-हलाहल तेग़-ए-क़ातिल है
जौन एलिया
नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
दस्त-ए-दौलत-आफ़रींं को मुज़्द यूँ मिलती रही
अहल-ए-सर्वत जैसे देते हैं ग़रीबों को ज़कात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अहल-ए-सर्वत की सियासत का सितम कुछ भी सही
कल की नस्लें भी कोई चीज़ हैं हम कुछ भी सही
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सरवत हुसैन
नज़्म
किसी ज़माने में हम ने,
'नासिर', 'फ़राज़', 'मोहसिन', 'जमाल', 'सरवत' के शेर अपनी चहकती दीवार पर लिखे थे
फ़रीहा नक़वी
नज़्म
मुझे शिकवा नहीं उन साहिबान-ए-जाह-ओ-सरवत से
नहीं आती मिरे हिस्सा में जिन की एक भी पाई