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नज़्म
यही वो मंज़िल-ए-मक़्सूद है कि जिस के लिए
बड़े ही अज़्म से अपने सफ़र पे निकले थे
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
मैं चराग़-ए-सर-ए-मंज़िल हूँ मुझे जलने दे
मेरी ख़ातिर तू न कर ऐश-ए-बहाराँ से गुरेज़
सादिक़ नक़वी
नज़्म
क़रार-ए-ख़ातिर-ए-आशुफ़्ता है फ़ज़ा उस की
निशान-ए-मंज़िल-ए-सिद्क़-ओ-सफ़ा सुदेशी है