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नज़्म
सरज़मीन-ए-हिन्द को जन्नत बनाने के लिए
कैसे कैसे दस्त-ओ-बाज़ू के शजर जाते रहे
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
ख़्वाब-ए-गिराँ से ग़ुंचों की आँखें न खुल सकीं
गो शाख़-ए-गुल से नग़्मा बराबर उठा किया
आल-ए-अहमद सुरूर
नज़्म
फूलों से और फलों से शाख़-ए-शजर लदी है
उश्शाक़ के दिलों में उलझन सी पड़ गई है
मोहम्मद शरफ़ुद्दीन साहिल
नज़्म
क़ुमरियाँ शाख़-ए-सनोबर से गुरेज़ाँ भी हुईं
पत्तियाँ फूल की झड़ झड़ के परेशाँ भी हुईं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सुब्ह के हाथ में ख़ुर्शीद के साग़र की तरह
शाख़-ए-ख़ूँ-रंग-ए-तमन्ना में गुल-ए-तर की तरह
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
ब-ज़ेर-ए-शाख़-ए-गुल-ए-शगुफ़्ता मैं सूरत-ए-शम्अ' चुप खड़ी हूँ
फ़ज़ा में कोयल की इक सदा है
बिलक़ीस जमाल बरेलवी
नज़्म
रो रहे हैं ग़ुन्चा-ओ-बर्ग-ओ-शजर तेरे बग़ैर
बाग़ की सारी फ़ज़ा है नौहागर तेरे बग़ैर
जौहर निज़ामी
नज़्म
तू खिलाता है नए गुल जो रवाँ होता है
रंग ये शाख़-ए-गुल-ए-तर में कहाँ होता है
मास्टर बासित बिस्वानी
नज़्म
हमेशा सब्ज़ रहेगी वो शाख़-ए-मेहर-अो-वफ़ा
कि जिस के साथ बंधी है दिलों की फ़तह ओ शिकस्त
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सर-ज़मीन-ए-शेर काबा और तू इस का ख़लील
शाख़-ए-तूबा-ए-सुख़न पर हमनवा-ए-जिब्रईल