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नज़्म
क़सम खाता हूँ मैं हिन्दोस्ताँ की शान-ओ-शौकत की
क़सम खाता हूँ हिम्मत की दिलेरी की शुजाअ'त की
वफ़ा बराही
नज़्म
ये शान-ओ-शौकत जो भी है सब बरकत नंबर दो की है
सब बरकत नंबर दो की है सब बरकत नंबर दो की है
सदा अम्बालवी
नज़्म
शान-ओ-शौकत की तुम्हारी धूम है आफ़ाक़ में
दूर से आ आ के तुम को देखते हैं बा-कमाल
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
न किब्र-सिनी न ज़ोफ़ न लाचारी से पनाह माँगूँगा
न दुनिया जहान की ख़ुशियाँ न शान-ओ-शौकत ही