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नज़्म
मगर वो दरिंदे तो गिनती के हैं
अनगिनत मर्द वो हैं जिन्हों ने तुम्हें शान-ओ-तकरीम बख़्शी
रहमान फ़ारिस
नज़्म
शाना-ए-गीती पे लहराने को हैं गेसु-ए-शब
आसमाँ में मुनअक़िद होने को है बज़्म-ए-तरब
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
जमील मज़हरी
नज़्म
याद आया एक रोज़ कहा था तुम ने
हर किसी को एक शाना चाहिए जिस पर सर रख के रो सके वो
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
ये माना मग़रिबी तालीम ने पर्वाज़ बख़्शी है
ये माह-ओ-ख़ुर भी बन जाएँगे अब क़िंदील का शाना
बेबाक भोजपुरी
नज़्म
ज़मीन बारिश से है फ़सुर्दा पकड़ के शाना ज़रा हिला दे
लगी है तेरी ही आस सब को अमीर हूँ या फ़क़ीर बेकस