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नज़्म
अगर तुम मुस्तइ'द्दी को बना लोगे शिआर अपना
यक़ीं जानो कि मुस्तक़बिल है बेहद शानदार अपना
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
कल शब वो बेहद अज़ीम शानदार शजर मिरा था
कल तलक जो देता था अपनी छाँव का शामियाना
उत्कर्ष मुसाफ़िर
नज़्म
ऐ ग़ाफ़िल तुझ से भी चढ़ता इक और बड़ा ब्योपारी है
क्या शक्कर मिस्री क़ंद गरी क्या सांभर मीठा खारी है