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नज़्म
हया रोके थी अब तक कुछ न उन के रू-ब-रू निकली
बहुत छेड़ा दिल-ए-मुज़्तर को तब ये गुफ़्तुगू निकली
मंझू बेगम लखनवी
नज़्म
सर-सब्ज़ी मस्ती शादाबी झोंकों का मद्धम संगीत
हरे-भरे खेतों में नन्हे मने पौदों की सरसर
बलराज कोमल
नज़्म
नाज़ हो जिस को बहार-ए-मिस्र-ओ-शाम-ओ-रूम पर
सर-ज़मीन-ए-हिंद में देखे फ़ज़ा बरसात की
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
नाज़ हो जिस को बहार-ए-मिस्र-ओ-शाम-ओ-रूम पर
सर-ज़मीन-ए-हिंद में देखे फ़ज़ा बरसात की