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नज़्म
ग़म-ए-फ़ुर्क़त है लेकिन फिर भी हम मसरूर रहते हैं
शरीक-ए-ज़िंदगी हूँ देश भारत के सिपाही की
बनो ताहिरा सईद
नज़्म
फैज़ तबस्सुम तोंसवी
नज़्म
बहार आई है शोरिश है जुनून-ए-फ़ित्ना-सामाँ की
इलाही ख़ैर रखना तू मिरे जैब-ओ-गरेबाँ की
शहीद काकोरवी
नज़्म
यहाँ के लोगों को हम इतना साफ़ देखते हैं
कि जैसे शैख़-ए-अदब ज़ेर-ए-नाफ़ देखते हैं