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नज़्म
वो बोला सुन के तेरा गया है शुऊ'र क्या
कश्फ़-उल-क़ुलूब और ये कश्फ़-उल-क़ुबूर क्या
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
नून मीम राशिद
नज़्म
अजम, वो मर्ज़-ए-तिलिस्म-ओ-रंग-ओ-ख़्याल-ओ-नग़मा
अरब, वो इक़लीम-ए-शीर-ओ-शहद-ओ-शराब-ओ-खुर्मा
नून मीम राशिद
नज़्म
फिर भी जाने किस तरह शीर-ओ-शकर थे हम
हमारी छोटी छोटी ख़्वाहिशें हर तौर हम-आहंग थीं इतनी
इशरत आफ़रीं
नज़्म
ميں نے چاقو تجھ سے چھينا ہے تو چلاتا ہے تو
مہرباں ہوں ميں ، مجھے نا مہرباں سمجھا ہے تو
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नहीं तेशा तो सर टकरा के जू-ए-शीर लाएँगे
बयाबान-ए-जुनूँ में जानशीन-ए-कोहकन हम हैं
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
बशर नवाज़
नज़्म
भगवान भगत ने हिम्मत की इक प्रेम-ज्वाला जाग उठी
करवा कर शीर-ओ-शकर सब को दिखला दिया गाँधी बाबा ने
आफ़ताब रईस पानीपती
नज़्म
कभी गंगा कभी कौसर से मिलें जाम पे जाम
यूँ बनें शीर-ओ-शकर तेरी हुकूमत में अवाम