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नज़्म
सारे शोअ'रा के अलम-दार थे मिर्ज़ा ग़ालिब
मादर-ए-हिन्द के फ़नकार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब'
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
बे-हयाई है अगर 'ज़ाहिदा' ले शे'र का नाम
आह ऐ क़द्र-शनास-ए-शोअरा तेरे ब'अद
ज़ाहिदा ख़ातून शरवानिया
नज़्म
किस की आँखों में समाया है शिआर-ए-अग़्यार
हो गई किस की निगह तर्ज़-ए-सलफ़ से बे-ज़ार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दिल में इक शोला भड़क उट्ठा है आख़िर क्या करूँ
मेरा पैमाना छलक उट्ठा है आख़िर क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
'ज़रयून' को आ के सुला क्यूँ न जा''
तुम्हारे ब्याह में शजरा पढ़ा जाना था नौशा वास्ती दूल्हा
जौन एलिया
नज़्म
मैं न ज़िंदा हूँ कि मरने का सहारा ढूँडूँ
और न मुर्दा हूँ कि जीने के ग़मों से छूटूँ