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नज़्म
अलीगढ़ है यहाँ ऐ दोस्त क्या पाया नहीं जाता
यहाँ वो कौन सा शो है जो दिखलाया नहीं जाता
सय्यदा फ़रहत
नज़्म
उजले लफ़्ज़ों के शो-केसों में सजा कर हम-कलामी करते थे
जाने कितने जिस्मों के विसाल से होते हुए
अंजुम सलीमी
नज़्म
बिन मुर्दे घर में शोर मचाती है मुफ़्लिसी
लाज़िम है गर ग़मी में कोई शोर-ग़ुल मचाए