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नज़्म
था यहाँ तक हम पे जौर-ए-गर्दिश-ए-चर्ख़-ए-बुलंद
मोतियों के बदले हम को कंकर आते थे पसंद
जगत मोहन लाल रवाँ
नज़्म
वो जवाँ-क़ामत में है जो सूरत-ए-सर्व-ए-बुलंद
तेरी ख़िदमत से हुआ जो मुझ से बढ़ कर बहरा-मंद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जैसे धड़कनों के रास्ते में थम गया
शुऊर-ए-उम्र-ओ-ज़िंदगी सिमट गया है कर्ब के जुमूद में
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
हुए वा शुऊ'र-ए-ग़म-ए-ज़ीस्त के दर तुम्हारी वज्ह से
उजागर हुआ मुझ में एहसास-ए-हस्ती तुम्हारी वज्ह से
शहनाज़ परवीन शाज़ी
नज़्म
शुऊर-ए-अस्र-ए-हाज़िर में सिमटती है ख़ुदाई
समाअ'त का ये आलम है जो गुम-गश्ता सदाएँ थी सुनाई दे रही हैं
सलमान सरवत
नज़्म
जिस के होने से शुऊ'र-ए-दोश-ओ-फ़र्दा था हमें
जिस के होने से यक़ीं था अपने होने का हमें
ग़ुलाम हुसैन साजिद
नज़्म
अभी सब दग़दग़ा मिट जाए ये सय्याद-ओ-गुलचीं का
जो हम पैदा शु'ऊर-ए-ज़िंदगी-ए-गुलिस्ताँ कर लें
इनाम थानवी
नज़्म
तेरे साहिल से टपकती अब भी है शान-ए-बुलंद
आसमाँ-फ़र्सा हैं अब भी तेरे ऐवान-ए-बुलंद