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नज़्म
राहत हो या कि रंज ख़ुशी हो कि इंतिशार
वाजिब हर एक रंग में है शुक्र-ए-किर्दगार
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
अपने पैमाँ को मानिंद-ए-हबाब टूटता देख कर
आओ मोहब्बत के ख़ुदा का शुक्रिया अदा करें