आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "sinf-e-sukhan"
नज़्म के संबंधित परिणाम "sinf-e-sukhan"
नज़्म
मर्सिया-ए-गोई बनी मुक़्तदिर इक सिंफ़-ए-सुख़न
या'नी इस फ़न को मिला आप से रुत्बा क्या क्या
नाज़िश प्रतापगढ़ी
नज़्म
यक़ीनन इंक़लाब-ए-हिन्द होगा ऐ 'सुख़न' होगा
हमें ज़ेबा है अपने घर में झंडा सुर्ख़ लहराना
टीका राम सुख़न
नज़्म
फिर यक़ीं आए 'सुख़न' ये इंक़िलाब है ज़िंदाबाद
हिंदू-ओ-मुस्लिम का हाँ अब रंग लाया है जिहाद
टीका राम सुख़न
नज़्म
जानती है अपनी रुस्वाई को तो वज्ह-ए-नुमूद
सिंफ़-ए-नाज़ुक की खुली तौहीन है तेरा वजूद
माहिर-उल क़ादरी
नज़्म
जब करेगी सिंफ़-ए-नाज़ुक अपनी उर्यानी पे नाज़
सिर्फ़ इक तू इस तलातुम में रहेगी पाक-बाज़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
वो जाँ-फ़रेबी-ए-इज़हार-ए-दिल-नवाज़-ए-सुख़न
जबीं पे वुसअ'त-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र की तहरीरें
मुस्लिम शमीम
नज़्म
आसमाँ जान-ए-तरब को वक़्फ़-ए-रंजूरी करे
सिंफ़-ए-नाज़ुक भूक से तंग आ के मज़दूरी करे
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ऐ 'अज़ीज़-ए-महफ़िल-ए-शे'र-ओ-सुख़न तुझ को सलाम
ऐ सबा-ए-सुब्ह-दम ज़ेब-ए-चमन तुझ को सलाम
सफिया अंकोलवी
नज़्म
कई तबक़ात हैं दिन के
कहीं सुब्ह-ए-मुकाफ़ात-ए-सुख़न के मंतक़े में तुम मुक़य्यद हो