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नज़्म
सिपाह-ए-महर का फ़सील-ए-शब को इंतिज़ार है
कब आएगा वो शख़्स जिस का सब को इंतिज़ार है
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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सिपाह-ए-महर का फ़सील-ए-शब को इंतिज़ार है
कब आएगा वो शख़्स जिस का सब को इंतिज़ार है
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