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नज़्म
कि नफ़्इ-ए-ऐन-ए-ऐन ओ सर-ब-सर ज़िद्दीन हैं दोनों
Luis-Urbina ने मेरी अजब कुछ ग़म-गुसारी की
जौन एलिया
नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ख़ुदी में डूब जा ग़ाफ़िल ये सिर्र-ए-ज़िंदगानी है
निकल कर हल्क़ा-ए-शाम-ओ-सहर से जावेदाँ हो जा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिन के सर मुंतज़िर-ए-तेग़-ए-जफ़ा हैं उन को
दस्त-ए-क़ातिल को झटक देने की तौफ़ीक़ मिले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
गोशा-ए-दिल में छुपाए इक जहान-ए-इज़तिराब
शब सुकूत-अफ़्ज़ा हवा आसूदा दरिया नर्म सैर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आँख पर होता है जब ये सिर्र-ए-मजबूरी अयाँ
ख़ुश्क हो जाता है दिल में अश्क का सैल-ए-रवाँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रूह-ए-'सर-सय्यद' से रौशन तेरा मय-ख़ाना रहे
रहती दुनिया तक तिरा गर्दिश में पैमाना रहे
जोश मलीहाबादी
नज़्म
यहाँ अहल-ए-अलीगढ़ जो भी सुब्ह-ओ-शाम करते हैं
बड़े लाएक़ हैं सर-सय्यद का ऊँचा नाम करते हैं