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नज़्म
यही वो मंज़िल-ए-मक़्सूद है कि जिस के लिए
बड़े ही अज़्म से अपने सफ़र पे निकले थे
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
फीका है जिस के सामने अक्स-ए-जमाल-ए-यार
अज़्म-ए-जवाँ को मैं ने वो ग़ाज़ा अता किया
आल-ए-अहमद सुरूर
नज़्म
अगर कोह-ए-गिराँ भी होगा अपनी राह में हाइल
उसे भी पाएमाल-ए-अज़्म-ओ-हिम्मत कर के छोड़ेंगे
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
हादी-ए-राह-ए-तरीक़त मुर्शिद-ए-रौशन-ज़मीर
आसमान-ए-अज़्म-ओ-इस्तिक़लाल के मेहर-ए-मुनीर
शातिर हकीमी
नज़्म
यक़ीन-ए-अज़्म-ओ-अमल इश्तिराक-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र
इन्हीं से दर्स-ए-तपिश ले रही है रूह-ए-बशर
सहबा लखनवी
नज़्म
क्या अहल-ए-दिल में जज़्बा-ए-ग़ैरत नहीं रहा
क्या अज़्म-ए-सर-फ़रोशी-ए-मर्दां चला गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
यकसाँ नज़दीक-ओ-दूर पे था बारान-ए-फ़ैज़-ए-आम तिरा
हर दश्त-ओ-चमन हर कोह-ओ-दमन में गूँजा है पैग़ाम तिरा