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नज़्म
जब मर्ग फिरा कर चाबुक को ये बैल बदन का हाँकेगा
कोई नाज समेटेगा तेरा कोई गौन सिए और टाँकेगा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
आँखें चीख़ें कि निकल आया वो उम्मीद का चाँद
चौंका दीवाना कि दामान-ए-दरीदा को सिए
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
मला चेहरे पे दिन के किस तरह ग़ाज़ा तबस्सुम का
सिए हैं ज़ख़्म किस-किस तरह से बे-ख़्वाब रातों के
बशर नवाज़
नज़्म
मेरे सीने पर मगर रखी हुई शमशीर सी
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ