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नज़्म
कर रहा है क़स्र-आज़ादी की बुनियाद उस्तुवार
फ़ितरत-ए-तिफ़्ल-ओ-ज़न-ओ-पीर-ओ-जवाँ का इंक़लाब
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
अली अकबर नातिक़
नज़्म
शराब-ए-शोर से लबरेज़ है दुनिया का पैमाना
हरीफ़-ए-दीन-ओ-दानिश है मज़ाक़-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना
बेबाक भोजपुरी
नज़्म
मुझे लगता है अब साग़र भी जैसे एक मय-ख़ाना
निगाह-ए-ख़ास है जब से तिरी ऐ पीर-ए-मय-ख़ाना
अशरफ़ बाक़री
नज़्म
मिरी क़िस्मत में इस मय-ख़ाने का साग़र नहीं यारब
एवज़ में इस के मुझ को मशरब-ए-पीर-ए-मुग़ाँ दे दे
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
शाइ'र-ए-हिन्दोस्ताँ ऐ शाइ'र-ए-जादू-बयाँ
हिन्द के ख़ुम-ख़ाना-ए-इरफ़ाँ के ऐ पीर-ए-मुग़ाँ