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नज़्म
उन ख़ुदा-आगाह दरवेशों की सूरत रक़्स करता है
जिन्हें ख़ुद अपने तन-मन की कोई सुध-बुध नहीं रहती
तहसीन फ़िराक़ी
नज़्म
हर वक़्त मगर पढ़ते रहना कम-उम्रों का तो काम नहीं
सब अपनी अपनी कुर्सी पर सुध-बुध बिसराए बैठे हैं