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नज़्म
तो हर हर याद के सदक़े में अश्कों के परिंदे चूम कर आज़ाद करता हूँ
तुम्हें हँसती हुई सुन लूँ
रहमान फ़ारिस
नज़्म
वो अक्स जो जगह जगह क़दम क़दम रिधम पे है
जहान ऐन सुर में है जहान ऐन सम पे है