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नज़्म
सुर्ख़-रू आफ़ाक़ में वो रहनुमा मीनार हैं
रौशनी से जिन की मल्लाहों के बेड़े पार हैं
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
कल वफ़ा उर्दू से उस की सुर्ख़-रू हो जाएगी
दास्तानों में छुपी इक दास्ताँ संजीव है