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नज़्म
तुम्हारे शेर पढ़ कर जाने क्यूँ महसूस होता है
कि कोई साज़ पर मद्धम सुरों में गुनगुनाता है
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
धनक गीत बन के समाअ'त को छूने लगी हो
शफ़क़ नर्म कोमल सुरों में कोई प्यार की बात कहने चली हो
परवीन शाकिर
नज़्म
दिलों पे ख़ौफ़ के पहरे लबों पे क़ुफ़्ल सुकूत
सुरों पे गर्म सलाख़ों के शामियाने हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सफ़ारत हो सिनेमा हो कि टीवी रेडियो सब में
सुरों का नश्शा है फ़िक्र-ओ-नज़र का जाम है उर्दू
माजिद-अल-बाक़री
नज़्म
तसलसुल और तवातुर के दवाइर में थिरकती हैं
सुरों के दाने इक तस्बीह बन जाते हैं ''लय'' के नर्म हाथों में